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सिंगापुर में ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस सिंगापुर में ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस 

ख्रीस्तयाग में पोप : प्रेम ही सुसमाचार का केंद्र है

संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार को सिंगापुर के स्पोर्टस हब नैशनल स्टेडिम में विश्वासियों के साथ ख्रीस्तयाग अर्पित किया। सिंगापुर के नेशनल स्टेडियम में ख्रीस्तयाग के दौरान पोप फ्रांसिस ने विश्वासियों को याद दिलाया कि प्रेम ही, हम जो कुछ भी हैं और करते हैं, उसका आधार है।

वाटिकन न्यूज 

सिंगापुर, बृहस्पतिवार, 12 सितम्बर 2024 (रेई) : संत पापा ने उपदेश में दिन के पाठ पर चिंतन करते हुए कहा, “ज्ञान घमंडी बनाता जबकि प्रेम निर्माण करता है।” (1 कोर. 8:1) संत पौलुस ने ये शब्द कुरिन्थ के ख्रीस्तीय समुदाय के भाइयों और बहनों को संबोधित करते हुए लिखे हैं, उस समुदाय को जो कई विशिष्ठताओं से समृद्ध था।(1 कोर. 1:4-5) प्रेरित अक्सर यह सलाह देते हैं कि दान में सहभागिता विकसित की जाए।

आइये, हम पौलुस के उन शब्दों को सुनें और साथ मिलकर सिंगापुर की कलीसिया के लिए प्रभु को धन्यवाद दें, जो वरदानों से समृद्ध है, एक ऐसी कलीसिया जो जीवंत है, बढ़ रही है और कई अन्य समुदायों और धर्मों के साथ रचनात्मक संवाद में संलग्न है जिनके साथ यह इस अद्भुत भूमि को साझा करती है।

प्रेम महान कार्यौं की नींव है

संत पापा ने कहा कि इस कारण से, मैं पौलुस के शब्दों पर विचार करना चाहूँगा, तथा इस शहर की सुन्दरता एवं इसकी महान एवं साहसिक वास्तुकला, विशेषकर, इस प्रभावशाली राष्ट्रीय स्टेडियम परिसर को प्रारंभिक बिन्दु के रूप में लेना चाहूँगा, जिसने सिंगापुर को इतना प्रसिद्ध और आकर्षक बनने में योगदान दिया है।

सबसे पहले, हमें यह याद रखना चाहिए कि, अंततः, इन भव्य इमारतों के मूल में, किसी अन्य उपक्रम की तरह, जो हमारी दुनिया पर सकारात्मक छाप छोड़ते हैं, वह प्रेम है, वही “प्रेम जो निर्माण करता है।”

कुछ लोग सोच सकते हैं कि यह एक अनुभवहीन कथन है, लेकिन इसपर विचार करने पर हम पा सकते हैं कि यह सच नहीं है। वास्तव में, अच्छे कामों के पीछे प्रतिभाशाली, मजबूत, अमीर और रचनात्मक लोगों के साथ साथ, हमेशा हमारे जैसे कमज़ोर महिलाएँ और पुरुष होते हैं, जिनके लिए प्यार के बिना कोई जीवन नहीं है, कोई प्रेरणा नहीं है, कोई कार्य करने का कारण नहीं है, कोई निर्माण करने की ताकत नहीं है।

संत पापा ने कहा, “प्यारे भाइयो और बहनो, अगर इस दुनिया में कोई अच्छी चीज, जीवित और टिकी रहती है, तो यह केवल इसलिए है क्योंकि, कई परिस्थितियों में, नफरत पर प्यार, उदासीनता पर एकजुटता, स्वार्थ पर उदारता की जीत हुई है। इसके बिना, यहाँ कोई भी इतने बड़े महानगर को जन्म नहीं दिया होता, वास्तुकारों ने इसे डिज़ाइन नहीं किया होता, श्रमिकों ने इस पर काम नहीं किया होता और कुछ भी हासिल नहीं हुआ होता।

सिंगापुर में ख्रीस्तयाग
सिंगापुर में ख्रीस्तयाग

ईश्वर हमारे प्रेम के मूल आधार

अतः जो हम देख रहे हैं वह एक संकेत है, और हमारे सामने मौजूद प्रत्येक कृति के पीछे प्रेम की अनेक कहानियाँ छिपी हैं: एक समुदाय में एक-दूसरे से जुड़े हुए स्त्री-पुरुष की, अपने देश के लिए समर्पित नागरिकों की, अपने परिवारों के लिए चिंतित माता-पिताओं की, विभिन्न भूमिकाओं और कार्यों में ईमानदारी से लगे हुए सभी प्रकार के पेशेवरों और श्रमिकों की। इसलिए हमारे लिए यह अच्छा है कि हम अपने घरों के सामने और सड़कों पर लिखी इन कहानियों को पढ़ना सीखें और उनकी स्मृति को आगे बढ़ाएँ, ताकि हमें याद रहे कि प्रेम के बिना कोई भी स्थायी चीज न तो जन्म लेती और न ही बढ़ती है।

कभी-कभी हमारी परियोजनाओं की महानता और भव्यता हमें भूलने और यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि हम अपने जीवन, अपनी संपत्ति, अपनी खुशहाली, अपनी खुशी के एकमात्र मालिक हैं। फिर भी, अंततः, जीवन हमें एक वास्तविकता पर वापस लाता है: प्रेम के बिना हम कुछ भी नहीं हैं।

विश्वास, इस धारणा के बारे में हमें और भी गहराई से पुष्ट और प्रबुद्ध करता है, क्योंकि यह हमें बताता है कि प्यार करने और प्यार पाने की हमारी क्षमता की जड़ में स्वयं ईश्वर हैं, जिन्होंने एक पिता के हृदय से हमें पूरी तरह से नि:शुल्क तरीके से अस्तित्व में लाने की इच्छा व्यक्त की है (1 कुरि 8:6) और जिन्होंने निःशुल्क तरीके से हमें छुड़ाया है और अपने इकलौते बेटे की मृत्यु और पुनरुत्थान के माध्यम से हमें पाप एवं मृत्यु से मुक्त किया है। ख्रीस्त हमारे हर निर्माण की उत्पत्ति और पूर्णता हैं।

इस प्रकार, हमारे प्रेम में हम ईश्वर के प्रेम का प्रतिबिंब देखते हैं, जैसा कि संत जॉन पॉल द्वितीय ने इस भूमि की अपनी यात्रा के दौरान कहा था। उन्होंने आगे यह महत्वपूर्ण बिंदु जोड़ा कि, "प्रेम की विशेषता सभी लोगों के प्रति गहरा सम्मान है, चाहे उनकी जाति, विश्वास या जो कुछ भी उन्हें हमसे अलग बनाता है, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।"

सिंगापुर में ख्रीस्तयाग
सिंगापुर में ख्रीस्तयाग

ईश्वर के प्रेम को दूसरों को बांटना

ये शब्द हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि मानवीय कार्यों के सामने हम जो आश्चर्य महसूस करते हैं, उससे परे, वे हमें याद दिलाते हैं कि इससे भी बड़ा आश्चर्य है जिसे और भी अधिक प्रशंसा और सम्मान के साथ अपनाया जाना चाहिए: अर्थात्, भाई-बहन जिनसे हम बिना किसी भेदभाव के, हर दिन अपने रास्ते पर मिलते हैं, जैसा कि हम सिंगापुर के समाज और कलीसिया में देखते हैं, जो जातीय विविधता के बावजूद एकजुट और एकात्मक हैं!

ईश्वर की नजर में सबसे सुंदर इमारत, सबसे कीमती खजाना, सबसे लाभदायक निवेश, खुद हम हैं, क्योंकि हम एक ही पिता के प्यारे बच्चे हैं ( लूका 6:35), बदले में हम प्यार फैलाने के लिए बुलाए गये हैं। पवित्र मिस्सा के पाठ हमारे लिए एक ही प्रेम का वर्णन विभिन्न रूपों में करते हैं, यह कमजोर लोगों की दुर्बलता का सम्मान करने में कोमलता है (1 कुरि 8:13), जीवन की यात्रा में अजनबी लोगों को जानने और उनका साथ देने एवं बिना नाप के क्षमा करने में उदार और दयालु बनना है। (लूका 6:27-38)

ईश्वर हमें जो प्रेम दिखाते हैं, और जिसे वे हमें दूसरों के साथ साझा करने के लिए आमंत्रित करते हैं, वह "गरीबों की जरूरतों को उदारता से पूरा करता है...दुःख में पड़े लोगों के प्रति करुणा प्रदर्शित करता...अतिथियों की सेवा करने में तत्पर रहता और परीक्षा के समय में अडिग बना रहता है। वह हमेशा क्षमा करने और आशा करने के लिए तैयार रहता है" यहाँ तक कि "शाप के बदले आशीर्वाद देने के लिए भी तैयार रहता है...प्रेम सुसमाचार का केंद्र है।" (संत जॉन पॉल द्वितीय, नेशनल स्टेडियम, सिंगापुर में पवित्र मिस्सा, उपदेश, 20 नवंबर 1986)।

संतों का उदाहरण

वास्तव में, हम इसे बहुत से संतों, पुरुषों और महिलाओं में देख सकते हैं जो करुणा के ईश्वर द्वारा इतने प्रभावित हुए कि वे उस करुणा के प्रतिबिम्ब, प्रतिध्वनि और जीवंत छवि बन गए।

उन में से पोप ने दो संतों को विशेष रूप से याद किया। कुँवारी मरियम और संत फ्राँसिस जेवियर।

उन्होंने कहा, “पहला नाम है मरियम, जिसका पवित्रतम नाम का पर्व हम आज मनाते हैं। उन्होंने अपने समर्थन और उपस्थिति से बहुत से लोगों को आशा दी हैं, और आज भी देती हैं! कितने होठों पर उनका नाम खुशी एवं दुःख के क्षणों में प्रकट होता रहता है! ऐसा इसलिए है क्योंकि उसमें हम पिता के प्रेम को सबसे सुंदर और पूर्ण तरीके से प्रकट होते हुए देखते हैं, क्योंकि उनमें हम एक माँ की कोमलता देखते हैं, जो सब कुछ समझती है और माफ करती है और जो हमें कभी नहीं छोड़ती। यही कारण है कि हम उनके शरण में आते हैं!

संत फ्राँसिस जेवियर की याद करते हुए संत पापा ने कहा, “दूसरे संत इस भूमि के लिए अत्यन्त प्रिय हैं, जिन्होंने अपनी मिशनरी यात्राओं के दौरान कई बार यहाँ आतिथ्य पाया। मैं संत फ्राँसिस जेवियर की बात कर रहा हूँ, जिनका इस भूमि पर कई बार स्वागत किया गया, आखिरी बार 21 जुलाई 1552 को, उनकी मृत्यु से कुछ महीने पहले।

हमारे पास अभी भी एक सुंदर चिट्टी है जिसे उन्होंने संत इग्नासियुस और उनके पहले साथियों को संबोधित करते हुए लिखा था, जिसमें उन्होंने अपने समय के सभी विश्वविद्यालयों में जाने की इच्छा व्यक्त की थी ताकि वे “पागल की तरह चिल्ला सकें… [उन लोगों के पास] जो प्रेम से अधिक ज्ञान रखते हैं” ताकि वे अपने भाइयों और बहनों के प्यार के मिशनरी बनने के लिए प्रेरित हो सकें, और “अपने पूरे दिल से कह सकें: ‘प्रभु, मैं प्रस्तुत हूँ! आप मुझसे क्या चाहते हैं?’” (पत्र, कोचीन, जनवरी 1544)

ताकि वे न केवल इन दिनों में हमारे साथ रहें, बल्कि हमेशा, प्रेम करने और न्यायपूर्ण जीवन जीने के निमंत्रण को सुनने और तत्परता से प्रत्युत्तर देने की निरंतर प्रतिबद्धता के रूप में, जो आज भी ईश्वर के असीम प्रेम से हमारे पास आते रहते हैं।

ख्रीस्तयाग के उपरांत संत पापा संत फ्राँसिस जेवियर आध्यात्मिक साधना केंद्र गये। संत पापा की एशिया और ओशिनिया में 12 दिवसीय प्रेरितिक यात्रा का समापन, कल युवाओं के साथ अंतरधार्मिक सम्मेलन के साथ होगी।

सिंगापुर में ख्रीस्तयाग
सिंगापुर में ख्रीस्तयाग

 

 

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12 September 2024, 15:44