ҽ

संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में  (ANSA)

संत पापाः प्रेम पवित्र आत्मा से प्रोषित होता है

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में तीसरे ईशशास्त्रीय गुण प्रेम पर धर्मशिक्षा देते हुए कहा कि प्रेम पवित्र आत्मा से प्रेरित होता है।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एव बहनों, सुप्रभात।

आज हम तीसरे ईशशास्त्रीय गुण प्रेम की चर्चा करेंगे। अन्य दो- विश्वास और भरोसा जिन्हें हम याद रखें।  सद्गुणओं की हमारी इस धर्मशिक्षा माला में यह सारे गुणों की पराकाष्ठा है। प्रेम की चर्चा करने से हम शीघ्र ही अपने हृदय का विस्तार होता पाते हैं, यह हमारे मन को संत पौलुस के प्रेरितिक शब्दों की ओर अभिमुख करता है जिसे वे कुरिथिय़ों के नाम पहले पत्र में लिखते हैं। अपने मधुर गीत के अंत में संत पौलुस तीन ईशशास्त्रीय गुणों की घोषणा करते हैं- “अभी तो विश्वास, भरोसा और प्रेम ये तीनों बने हुए हैं, किन्तु इनमें प्रेम ही सबसे महान है।” (1. कुरिंथि.13.13)

विभाजन मानव की स्थिति

पौलुस अपने इन वचनों को उस समुदाय के लिए घोषित करते हैं जो अपने में भातृ प्रेम से ओत-प्रोत हैं। कुरिंथ का ख्रीस्तीय समुदाय में कलह की स्थिति थी, उनके बीच आंतरिक विभाजन था, वहाँ कुछ लोग थे जो अपने को सदैव सभी चीजों में सही समझते और दूसरों की नहीं सुनते थे, क्योंकि वे उन्हें तुच्छ समझते थे। संत पौलुस उन्हें इस बात की याद दिलाते हैं कि ज्ञान हमें घमंडी बनाता वहीं प्रेम हमारा निर्माण करता है। (1. कुरिं 8.1)। इसके बाद प्रेरित उन्हें उस बुराई की याद दिलाते हैं जो उन्हें ख्रीस्तीय एकता की सर्वोच्च स्थिति में भी प्रभावित करती है। “येसु का अंतिम व्यारी भोज”, यूखारीस्तीय भोज, यहाँ तक की इन स्थितियों में भी हम विभाजनों को पाते हैं, इसके साथ वे जो इसका लाभ खाने-पीने में उठाते हैं, उन्हें अपने से अलग करते हुए जो अपने में छोटे हैं। (1. कुरिं. 11, 18-20) इस संदर्भ में पौलुस हमें एक ठोस बात कहते हैं, “जब कभी आप मिलते हैं, आप ईश्वर के भोज में शामिल नहीं होते।” (20) यह एक अलग तरह की गैर-ख्रीस्तीय रीति होती है न कि ख्रीस्त का भोज।

संत पापा ने कहा कि कौन जाने, कुरिंथ का समुदाय में कोई यह नहीं सोचता था कि उसने पाप किया है और प्रेरित के उपयुक्त शब्द उनके लिए कठोर उनकी समझ से परे जान पड़ते हैं। शायद वे अपने में इस बात से विश्वस्त थे कि वे अच्छे लोग हैं, और यदि प्रेम के बारे में सावल किया जाता तो उनके पास यह जवाब था कि यह उनके लिए निश्चित ही एक अति मूल्यवान गुण है, वैसे ही जैसे कि हम मित्रता या परिवार में अपने संबंधों को पाते हैं। हमारे समय में भी, बहुत से लोगों वचनों में प्रेम की बातें कहते हैं, वे हमें “प्रभावित” करते हैं हम इसे सभी गीतों के स्थायी में पाते हैं।

येसु के प्रेम में “भिन्नता”

संत पापा ने कहा, “लेकिन दूसरा प्रेमॽ” पौलुस इसके बार में कुरिंथवासियों से सवाल करते हैं। वे उस प्रेम के बारे नहीं कहते जो हमें ऊपर उठाता है लेकिन वह प्रेम जो ऊपर से हमारे लिए आता है, वह प्रेम जो लेता नहीं बल्कि अपने को देता है। वह प्रेम नहीं दो दिखाई देता है अपितु वह प्रेम जो छिपा रहता है। पौलुस इस बात की चिंता करते हैं कि कुरिंथ में, जैसे कि हमारे समय में भी होता है- एक भ्रम की स्थिति है और हम वहाँ ईशशास्त्रीय सद्गुण की कोई निशानी दिखाई नहीं देखी है जो हमारे लिए ईश्वर की ओर से आती हो। और यदि वे अपने शब्दों में इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि वे अच्छे लोग हैं जो कि अपने परिवार और मित्रों से प्रेम करते हैं, तो उनके लिए सच्चाई यही है कि वे सही अर्थ में ईश्वर के प्रेम को नहीं जानते हैं।

हम प्रेम के योग्य हैं

प्राचीन ख्रीस्तीयों के लिए प्रेम को परिभाषित करने के लिए कई यूनानी शब्द थे। अंत में शब्द “अगापे” की उत्पत्ति हुई जिसे हम सधारणतः प्रेम के रुप में परिभाषित करते हैं। क्योंकि सही अर्थ में ख्रीस्तीय विश्व में सारे प्रेम के योग्य हैं- वे भी प्रेम करते हैं,जैसे कि यह हरएक के साथ होता है। वे भी उस कल्याण का अनुभव करते जिसे मित्रता में अनुभव किया जाता है। वे भी अपने देश और वैश्विक प्रेम को मानवता के लिए जीते हैं। लेकिन इसके भी बड़ा एक प्रेम है जो ईश्वर की ओर से आता और हमें ईश्वर की ओर अभिमुख करता है, जो हमें ईश्वर को प्रेम करने के योग्य बनाता है, जिसके फलस्वरुप हम उनके मित्र बनते हैं, और अपने पड़ोसियों को प्रेम करने के कबिल होते जैसे कि ईश्वर उन्हें प्रेम करते हैं, ऐसा करते हुए हम ईश्वर से मित्रता की चाह रखते हैं। यह प्रेम ख्रीस्त के कारण हमें वहाँ ले चलती जहाँ मानवीय रूप में लोग जाने की चाह नहीं रखते हैं, यह गरीबों के लिए प्रेम है, उनके लिए जो प्रेम के योग्य नहीं हैं, उनके लिए जो हमारी चिंता नहीं करते हैं और हमारे प्रति कृतज्ञता के भाव नहीं रखते हैं। यह वह प्रेम है जिसे कोई प्रेम करने की चाह नहीं रखता, यहाँ तक की अपने शत्रुओं के लिए भी। यह ईशशास्त्रीय सद्गुण है क्योंकि यह ईश्वर की ओर से आता है, यह हममें पवित्र आत्मा के कार्य को व्यक्त करता है।

येसु पर्वत प्रवचन में हमें शिक्षा देते हैं,“यदि तुम उन्हीं को प्यार करते हो, जो तुम्हें प्यार करते हैं, तो इसमें तुम्हारा पुण्य क्या हैॽ पापी भी अपने प्रेम करने वालो से ऐसा करते हैं।” (लूका. 6.32-33)। संत पापा ने कहा कि हम अपने शत्रुओं की निंदा शिकायत करते हैं। अंत में येसु कहते हैं, “अपने शत्रुओं से प्रेम करो, उनकी भलाई करो और वापस पाने की आशा न रख कर उधार दो। तभी तुम्हारा पुरस्कार महान् होगा और तुम सर्वोच्च प्रभु के पुत्र बन जाओगे, क्योंकि वह भी कृतघ्नों और दुष्टों पर दया करता है।”

संत पापाः प्रेम पर संत पापा की धर्मशिक्षा

प्रेम में करूणा के कार्य

इन शब्दों में, हम प्रेम को ईशशास्त्रीय गुण के रुप में अभिव्यक्त पाते हैं जिसमें कारूणा के कार्य निहित हैं। हम इसे तुरंत एक कठिन कार्य के रुप में पाते हैं, यदि कोई ईश्वर में निवास नहीं करता तो ऐसा करना एकदम असंभव है। हमारा मानवीय स्वभाव हमें उन चीजों को प्रेम करने के लिए स्वतः ही अग्रसर करता है जो अच्छी और सुंदर हैं। आदर्श या एक महान प्रेम के नाम पर हम अपने में साहसिक और उदारतापूर्ण कार्यों को कर सकते हैं। लेकिन ईश्वर के प्रेम करने का तरीका इस सारी चीजों से परे है। ख्रीस्तीय प्रेम उन चीजों का आलिंगन करता है जो प्रेम के योग्य नहीं हैं, यह क्षमादान देता है, संत पापा ने कहा कि हम जानते हैं क्षमा करना कितना कठिन है, यह उन्हें आशीष देता जो शाप देते हैं। हम सभी इसके आदी नहीं हैं, अपनी बुराई करने वाले की हम बुराई करने लगते हैं। यह वह उन्नत प्रेम है जो हमारे लिए एकदम असंभव लगता है, लेकिन केवल यही चीज है जो हमारे साथ रह जाती है। यह हमारे लिए वह संकरा मार्ग है जहाँ से होकर हमें स्वर्ग राज्य में प्रवेश करेंगे। क्योंकि अपने गोधूलि की बेला में हमारा न्याय हमारे सामान्य प्रेम से नहीं बल्कि विशिष्ट प्रेम से होगा, येसु कहते हैं.,“मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ तुमने मेरे इन भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया।” येसु के वचन कितने सुन्दर हैं। 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

15 May 2024, 14:51

ताजा आमदर्शन

सभी को पढ़ें >