संत पापाः नम्रता हमारे लिए सब कुछ है
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो,सुप्रभात।
हम सद्गुणों पर अपनी धर्मशिक्षा माला की इस कड़ी का समापन एक सद्गुण नम्रता पर विचार-मंथन करते हुए करेंगे जो सात कार्डिनल गुणों और ईशशास्त्रियों गुणों का अंग नहीं है, लेकिन यह ख्रीस्त जीवन की आधारशिला है। यह सभी महापापों अर्थात अहंकार का सबसे बड़ा विरोधी है। घमंड और अहंकार जिनके द्वारा हम मानव हृदय को फूलता पाते हैं, यह हमें, जो हम अपने में हैं उससे कहीं ज्याद हमें अपने को दिखाने हेतु अग्रसर करता है, वहीं नम्रता सारी चीजों को अपने सही आयाम तक बनाये रखती है। हम अपने में आश्चर्यजनक सृष्टि है लेकिन हमारी अपनी सीमाएँ हैं जहाँ हम गुणों और अवगुणों को पाते हैं। धर्मग्रँथ हमें शुरू में ही इसकी याद दिलाती है कि हम मिट्टी हैं और मिट्टी में मिल जायेंगे (उत्पि. 3.19)। नम्रता शब्द, वास्तव में पृथ्वी “हूमूस” से आती है। यद्यपि मानव में सर्वशक्तिमत्ता के भम्रित विचार सदैव हृदय में उठते हैं, जो अपने में खतरनाक है। यह हमारे लिए बुराई का कारण होता है।
अहंकार से मुक्ति नम्रता में
संत पापा ने कहा कि अहंकार से मनोभाव के मुक्त होने के लिए हमें अधिक समय नहीं लगता है, इसके सही मापदंड को स्थापित करने हेतु हमारे लिए सिर्फ आकाश के तारों पर चिंतन करना ही काफी है जैसे कि स्तोत्र हमें कहता है, “जब मैं तेरे बनाये हुए आकाश को देखता हूँ तेरे द्वारा स्थापित तारों और चन्द्रमा को, तो सोचता हूँ कि मनुष्य क्या है, जो तू उसकी सुधि ले”ॽ (स्तो. 8.4-5)। आधुनिक विज्ञान हमारी क्षितिज को विस्तृत करने में मदद करता और हम उन रहस्यों को अनुभव करने के योग्य बनाता है जिनसे हम घिरे हैं और जहाँ हम निवास करते हैं।
धन्य वचनों की शुरूआत नम्रता से
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि धन्य हैं वे जो अपने हृदय में छोटे होने के भाव को धारण करते हैं, ऐसे लोग अपने में अंहकार रूपी एक बड़ी बुराई से बचाये जाते हैं। येसु अपने धन्य वचनों की शुरूआत ठीक इसी से करते हैं, “धन्य हैं वे जो नम्र हैं, स्वर्गराज्य उनकी का है” (मत्ती.5.3)। यह प्रथम धन्यवचन है, क्योंकि यह सभी अन्य चीजों की नींव है जिसके ऊपर दूसरे धन्यवचन आधारित हैं, वास्तव में, नम्रता, करूणा और हृदय की शुद्धता अपने में हृदय के आंतरिक छोटेपन के मनोभाव से पनपती है। नम्रता अपने में सारे सद्गुणों की जननी है।
नम्रता और दरिद्रता
धर्मग्रंथ के शुरूआती पन्नों में, नम्रता और दरिद्रता के मनोभाव सारी चीजें के उद्गम स्थल प्रतीत होते हैं। संत पापा ने कहा कि स्वर्गदूत के संदेश की घोषणा येरूसालेम के द्वार में नहीं, बल्कि यह एक सुदूर गलीलिया के गाँव में होती है, यह अपने में इतनी तुच्छ समझी जाती थी कि लोग कहते थे “क्या नाजरेत से भी कोई अच्छी चीज आ सकती हैॽ” (यो.1. 46)। लेकिन ठीक वहाँ हम शब्द को शरीरधारण करते हुए, दुनिया के पुर्नजन्म को देखते हैं। चुनी हुई नेत्री एक छोटी रानी नहीं जो लाड़-प्यार से बड़ी होती हो बल्कि वह एक अज्ञात लड़की- मरियम है। वह स्वयं अपने में आश्चर्यचकित होती है जब स्वर्गदूत उसे ईश्वर का संदेश सुनाते हैं। और उसके हृदय में धन्यवाद का यह आश्चर्य गान ध्वनित होता है,“मेरी आत्मा प्रभु का गुणगान करती है, मेरा मन अपने मुक्तिदाता ईश्वर में आनंदित होता है, क्योंकि उसे अपनी दीन दासी पर कृपादृष्टि की है” (लूका. 1.46-48)। ईश्वर मरियम के छोटे होने पर आकर्षित होते हैं, जो आंतरिक रुप में उसमें व्याप्त नम्रता के भाव को व्यक्त करता है। वे हमारी ओर भी आकर्षित होते हैं जब हम अपने में उस नम्रता को धारण करते हैं।
सेवा में नम्रता की झलक
संत पापा ने कहा कि यहाँ से हम मरियम को देखते हैं कि वह अपने को केन्द्रविन्दु में स्थापित करने से सजग रहती है। स्वर्गदूत के संदेश की उद्घोषणा उपरांत उसका पहला निर्णय अपनी कुंटम्बिनी के लिए सेवा कार्य में प्रकट होता है जिसके लिए वह निकल पड़ती है। विनम्र लोग अपने छिपे हुए स्थानों से कभी निकलने की चाह नहीं रखते हैं। येसु कहते हैं कि धन्य हैं वे जो नम्र हैं। मरियम, यहाँ तक की अपने जीवन की पवित्र सच्चाई का भी दिखावा नहीं करती है।
नम्रता, मरियम का महान गुण
संत पापा ने कहा कि हम इस बात पर विचार कर सकते हैं कि मरियम को भी कठिन अवसरों से होकर गुजरना पड़ा, जहाँ वह अपने विश्वास को अंधेरे में पाती है। लेकिन यह उसकी नम्रता को हिला-डुला नहीं पाती है। यह उसमें एक महान गुण था। संत पापा ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि नम्रता अपने में एक महान गुण है। हमारे छोटेपन की अनुभूति हमें नम्रता में बने रहने को मदद करती है, और हम मरियम के बारे में विचार कर सकते हैं। यह छोटापन उसमें अजेय शक्ति है। यह मरियम है जो अपने को क्रूस के नीचे खड़ी रखती है जहाँ एक मुक्तिदाता की जीत चकनाचूर होती जान पड़ती है।
नम्रता शांति का स्रोत
संत पापा ने कहा प्रिय भाइयो एवं बहनो, नम्रता अपने में सब कुछ है। यह वह है जो हमें बुराई से बचाती है और ख्रीस्त का साथी बनने के खतरे से भी। नम्रता विश्व और कलीसिया के लिए शांति का स्रोत है। जहाँ नम्रता नहीं है, वहाँ हम युद्ध, असहमति और विभाजन को पाते हैं। ईश्वर ने हमें इसका उदाहरण येसु और मरियम में दिया है, जो हमारी मुक्ति और खुशी हैं। नम्रता वह मार्ग है जो हमें मुक्ति की ओर अग्रसर करती है।
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